हाल ही में शादी अमान्य होने पर भी मिलेगा गुजारा भत्ता? सुप्रीम कोर्ट ने सुखदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर केस में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। इस फैसले में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) की धारा 11 के तहत अमान्य (Void) घोषित कर दिया जाता है, तब भी पत्नी स्थायी गुजारा भत्ता (Permanent Alimony) और अंतरिम भरण-पोषण (Interim Maintenance) की हकदार हो सकती है। यह फैसला उन मामलों के लिए महत्वपूर्ण है जहां विवाह शून्य घोषित किया जाता है, लेकिन आर्थिक निर्भरता का सवाल बना रहता है।
Table Contents
- 1 मामले की पृष्ठभूमि
मामले की पृष्ठभूमि
इस केस में पति ने तर्क दिया कि जब कोई विवाह शून्य (Void) घोषित कर दिया गया है, तो वह कानूनी रूप से अस्तित्व में ही नहीं है। ऐसे में पत्नी को गुजारा भत्ता या भरण-पोषण (Maintenance) नहीं मिलना चाहिए। दूसरी ओर, पत्नी का कहना था कि भले ही विवाह अमान्य हो, लेकिन वह उस रिश्ते में रही है और उसे आर्थिक सहायता की जरूरत है। इस पर सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि क्या एक शून्य विवाह की स्थिति में भी पत्नी गुजारा भत्ता पाने की हकदार हो सकती है।
पति का पक्ष (Appellant’s Argument)
पति ने निम्नलिखित तर्क दिए:
- शून्य विवाह (Void Marriage) का कोई कानूनी अस्तित्व नहीं होता – हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत जब कोई विवाह अमान्य घोषित कर दिया जाता है, तो वह कानूनी रूप से कभी हुआ ही नहीं माना जाता। ऐसे में कोई भी कानूनी अधिकार नहीं बनता, जिसमें गुजारा भत्ता भी शामिल है।
- धारा 25 के तहत ‘किसी भी डिक्री’ (Any Decree) का मतलब तलाक की डिक्री से होना चाहिए – पति ने तर्क दिया कि धारा 25 के तहत सिर्फ तलाक की स्थिति में ही स्थायी गुजारा भत्ता दिया जा सकता है, न कि विवाह को शून्य घोषित करने वाली डिक्री में।
- गुजारा भत्ता देना कानून के सिद्धांतों के खिलाफ होगा – यदि विवाह कानूनी रूप से अमान्य था, तो पति को आर्थिक दायित्व से मुक्त माना जाना चाहिए।
- धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण भी नहीं दिया जाना चाहिए – पति ने कहा कि जब विवाह अमान्य ही था, तो मामले की सुनवाई के दौरान भी किसी तरह का आर्थिक सहयोग नहीं मिलना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अभय एस. ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि:
धारा 25 के तहत गुजारा भत्ता दिया जा सकता है –
अदालत ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 में “किसी भी डिक्री” शब्द का प्रयोग किया गया है। इसका अर्थ केवल तलाक की डिक्री नहीं है, बल्कि विवाह को शून्य घोषित करने वाली डिक्री भी इसमें शामिल है।इसलिए, भले ही विवाह को अमान्य घोषित कर दिया गया हो, लेकिन पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता दिया जा सकता है।
धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण भी मिल सकता है –
जब तक मुकदमे का अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक महिला को धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण मिल सकता है, यदि वह आर्थिक रूप से निर्भर है।हालांकि, यह सहायता विवेकाधीन होगी और महिला के आचरण को ध्यान में रखते हुए दी जाएगी।
महिलाओं के सम्मान और अधिकारों की रक्षा –
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी महिला को “अवैध पत्नी” या “वफादार रखैल” कहना उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन
- करता है।कोर्ट ने इस तरह की भाषा के उपयोग पर नाराजगी जाहिर की और इसे महिला विरोधी करार दिया।
इस फैसले का महत्व
यह निर्णय उन महिलाओं के लिए राहत लेकर आया है जो अमान्य विवाह में भी कई वर्षों तक रह चुकी होती हैं और आर्थिक रूप से कमजोर होती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि भले ही विवाह अमान्य हो, लेकिन एक बार वैवाहिक संबंध स्थापित होने के बाद, महिला को पूरी तरह से बेसहारा नहीं छोड़ा जा सकता।
यह फैसला कई मामलों में नज़ीर (precedent) बनेगा, खासकर उन मामलों में जहां:
- किसी महिला की शादी द्विविवाह (Bigamy) की वजह से अमान्य घोषित कर दी गई हो।
- पति-पत्नी निषिद्ध संबंधों (Prohibited Relationship) में होने के कारण शादी को शून्य घोषित कर दिया गया हो।
- विवाह सपिंडा संबंध (Sapinda Relationship) के कारण अमान्य हो।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महिला अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम है। इस फैसले से यह साफ हो गया कि यदि कोई शादी अमान्य भी हो जाए, तब भी महिला को गुजारा भत्ता और भरण-पोषण मिल सकता है।
निष्कर्ष
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