क्या पत्नी, बच्चे और माता-पिता का भरण-पोषण पति की ज़िम्मेदारी है? इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला | Gulshan vs State of UP

भूमिका:

धारा 125 सीआरपीसी (CrPC) भारत में भरण-पोषण से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है, जिसका उद्देश्य परित्यक्त (deserted) पत्नी, नाबालिग बच्चों और माता-पिता को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुलशन बनाम स्टेट ऑफ यूपी (AUS482/125/25, दिनांक 12/02/2025) मामले में यह स्पष्ट किया कि यह प्रावधान सामाजिक न्याय की अवधारणा पर आधारित है, जिसका मुख्य उद्देश्य परित्यक्त परिवार के सदस्यों को भटकने से बचाना और उनके जीवनयापन के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करना है।

इस ब्लॉग में हम इस केस का विश्लेषण करेंगे, जिसमें दोनों पक्षों के तर्क, कोर्ट की चर्चा और अंतिम निर्णय को विस्तार से समझेंगे।

धारा 125 सीआरपीसी: एक परिचय

धारा 125 सीआरपीसी उन व्यक्तियों को भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार देती है जो स्वयं अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं। इसमें मुख्य रूप से चार वर्ग आते हैं:

  1. पत्नी: यदि उसे पति ने बिना किसी उचित कारण के छोड़ दिया है या वह उसके साथ नहीं रह रही है।
  2. बच्चे: यदि वे नाबालिग हैं या वयस्क होते हुए भी किसी मानसिक या शारीरिक अक्षमता के कारण स्वयं की देखभाल नहीं कर सकते।
  3. माता-पिता: यदि वे वृद्ध हैं और उनका कोई अन्य सहारा नहीं है।

इस प्रावधान का उद्देश्य किसी व्यक्ति को पिछली उपेक्षा (neglect) के लिए दंडित करना नहीं है, बल्कि उसे तत्काल राहत देकर भुखमरी और बेघर होने से बचाना है।

मामले का संक्षिप्त विवरण (Case Summary)

मामला गुलशन बनाम स्टेट ऑफ यूपी से जुड़ा है, जिसमें याचिकाकर्ता (पति) ने यह दलील दी कि वह पत्नी को भरण-पोषण देने में असमर्थ है क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर है। वहीं, पत्नी ने दावा किया कि पति के पास आय के पर्याप्त स्रोत हैं और वह जानबूझकर उसे और उसके बच्चों को उपेक्षित कर रहा है।

इस केस में मुख्यतः निम्नलिखित प्रश्न उठे:

  • क्या पति की आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर उसे भरण-पोषण से छूट दी जा सकती है?
  • क्या पति का यह तर्क कि पत्नी अपने दम पर जीवनयापन कर सकती है, वैध है?
  • भरण-पोषण देने के लिए कोर्ट किन बातों को ध्यान में रखता है?

याचिकाकर्ता (पति) के तर्क

  1. आर्थिक कठिनाइयों का हवाला: पति ने कहा कि उसकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर है और वह स्वयं अपना भरण-पोषण करने में कठिनाई महसूस कर रहा है।
  2. पत्नी की आत्मनिर्भरता: पति ने यह भी तर्क दिया कि उसकी पत्नी शिक्षित और कार्यरत है, इसलिए वह खुद के लिए कमा सकती है और भरण-पोषण की मांग करना अनुचित है।
  3. कोर्ट द्वारा उचित भरण-पोषण तय करने की अपील: पति का कहना था कि यदि कोर्ट भरण-पोषण तय भी करता है तो उसे उसकी आय के अनुसार ही निर्धारित किया जाए।

उत्तरदाता (पत्नी) के तर्क

  • पति का जानबूझकर समर्थन न करना: पत्नी ने आरोप लगाया कि उसका पति जानबूझकर भरण-पोषण देने से बचने का प्रयास कर रहा है, जबकि उसके पास आय के कई स्रोत मौजूद हैं।
  • सामाजिक न्याय की अवधारणा: पत्नी ने धारा 125 CrPC का हवाला देते हुए कहा कि इसका उद्देश्य परित्यक्त महिलाओं और बच्चों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है ताकि वे दर-दर भटकने के लिए मजबूर न हों।
  • पति की पवित्र जिम्मेदारी: पत्नी ने कोर्ट में यह तर्क रखा कि हिंदू विवाह अधिनियम और CrPC की धारा 125 दोनों ही इस बात पर जोर देते हैं कि पति का यह नैतिक और कानूनी कर्तव्य है कि वह पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करे।

कोर्ट में बहस और विचार-विमर्श

कोर्ट ने इस मामले पर चर्चा करते हुए निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जोर दिया:

1. धारा 125 CrPC का उद्देश्य सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है

कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान केवल भरण-पोषण की मांग करने वाले व्यक्ति के अधिकार को ही नहीं देखता, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि किसी भी परित्यक्त व्यक्ति को भोजन, वस्त्र और आश्रय की कमी न हो।

2. भरण-पोषण एक कानूनी कर्तव्य है, न कि स्वैच्छिक सहायता

कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि भरण-पोषण प्रदान करना कोई ऐच्छिक दायित्व (voluntary duty) नहीं है, बल्कि यह कानूनी रूप से अनिवार्य कर्तव्य (legal obligation) है, जिसे पति को हर हाल में पूरा करना चाहिए।

3. यदि पति बेरोजगार भी हो, तब भी उसे भरण-पोषण देना होगा

कोर्ट ने पति के इस तर्क को खारिज कर दिया कि वह आर्थिक रूप से कमजोर है और इसलिए भरण-पोषण देने में असमर्थ है। कोर्ट ने कहा:
“पति को अपने कर्तव्य से बचने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यदि उसकी कोई आय नहीं है, तो उसे भरण-पोषण के लिए शारीरिक श्रम करके कमाना होगा।”

4. पत्नी की आर्थिक स्वतंत्रता कोई पूर्ण छूट नहीं देती

हालांकि यदि पत्नी स्वयं कमाने में सक्षम है, तो कोर्ट यह देखेगा कि क्या उसकी आय इतनी पर्याप्त है कि वह स्वयं का और बच्चों का भरण-पोषण कर सके। यदि नहीं, तो भरण-पोषण देना अनिवार्य होगा।

अंतिम निर्णय (Court’s Decision)

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा:

  1. पति अपनी आर्थिक स्थिति का बहाना बनाकर भरण-पोषण से नहीं बच सकता।
  2. यदि पति बेरोजगार है, तो उसे भी मेहनत करके भरण-पोषण की व्यवस्था करनी होगी।
  3. भरण-पोषण का उद्देश्य महिला को न्याय देना और उसे आत्मनिर्भर बनने तक वित्तीय सहायता देना है।
  4. पत्नी को उचित गुजारा भत्ता दिया जाएगा, लेकिन यदि वह आय अर्जित कर रही है, तो उसकी जरूरतों और पति की आय के अनुसार ही यह राशि तय की जाएगी।

कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह अपनी आय के अनुसार मासिक भरण-पोषण राशि अदा करे ताकि पत्नी और बच्चों को किसी प्रकार की आर्थिक कठिनाई का सामना न करना पड़े।

निष्कर्ष

यह फैसला उन सभी महिलाओं और बच्चों के लिए एक बड़ी राहत है जो भरण-पोषण के हकदार हैं, लेकिन अक्सर पति द्वारा दिए गए आर्थिक कठिनाइयों के तर्क के कारण उन्हें भरण-पोषण नहीं मिल पाता। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि भरण-पोषण पति का कर्तव्य है, भले ही उसे इसके लिए मेहनत करनी पड़े।

आप इस फैसले के बारे में क्या सोचते हैं? क्या यह भरण-पोषण से जुड़े मामलों में न्यायसंगत समाधान प्रदान करता है? अपने विचार कमेंट में साझा करें।

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Adv Vikas Shukla

Vikas Shukla is a lawyer and writer of blog. He writes on various law topics like crime, civil, recovery and family matters. He is a graduate in law who deals and practices with criminal matters, civil matters, recovery matters, and family disputes. He has been practicing for more than 5 above years and has cases from all over India. He is honest and hardworking in his field. He helps people by solving their legal problems. His blog provide valuable insights about law topics which are helpful for people.

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