Judgment of Grounds for acquittal in POCSO cases

भूमिका

दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया फैसले राज्य बनाम संतोष (CRLP 254/22, 16/12/24) ने आपराधिक मामलों में आयु प्रमाण के महत्व और इसके कानूनी प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया है। इस मामले में अभियोजन पक्ष पर यह ज़िम्मेदारी थी कि वह पीड़िता की उम्र को प्रमाणित करे, जिससे यह साबित किया जा सके कि अपराध के समय वह 18 वर्ष से कम थी। हालाँकि, न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष इस तथ्य को प्रमाणित करने में विफल रहा, जिससे आरोपी को राहत मिली।

यह मामला यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363 (अपहरण) और 376 (बलात्कार) से संबंधित था। Judgment of Grounds for acquittal in POCSO cases :इस लेख में हम इस केस के कानूनी पहलुओं, दोनों पक्षों के तर्क, न्यायालय की दलीलें और फैसले का विश्लेषण करेंगे।

मामले की पृष्ठभूमि

अभियोजन पक्ष ने आरोपी संतोष के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने एक नाबालिग लड़की का अपहरण किया और उसके साथ बलात्कार किया। मामले में POCSO अधिनियम की धारा 6 (गंभीर यौन अपराध) के तहत भी आरोप लगाए गए थे।

ट्रायल कोर्ट में अभियोजन पक्ष को यह साबित करना था कि:

  1. पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम थी, जिससे POCSO अधिनियम लागू हो।
  2. आरोपी ने पीड़िता को उसकी सहमति के बिना अगवा किया और उसके साथ बलात्कार किया।

मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों पर संदेह व्यक्त किया गया, जिससे यह सवाल उठा कि क्या पीड़िता की उम्र वाकई 18 साल से कम थी?

मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष के तर्क

अभियोजन पक्ष के तर्क

  1. स्कूल रिकॉर्ड के आधार पर उम्र का प्रमाण
    अभियोजन पक्ष ने पीड़िता की स्कूल मार्कशीट और उसके पिता के हलफनामे को उम्र प्रमाणित करने के लिए प्रस्तुत किया। उनका दावा था कि जन्म प्रमाण पत्र भले ही प्रस्तुत नहीं किया गया, लेकिन स्कूल रिकॉर्ड को प्राथमिक प्रमाण माना जाना चाहिए।
  2. माँ के हलफनामे पर ज़ोर
    अभियोजन पक्ष ने यह भी दावा किया कि पीड़िता की माँ द्वारा दिया गया हलफनामा उसकी उम्र को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है।
  3. आरोपी पर ज़बरदस्ती का आरोप
    अभियोजन पक्ष ने कहा कि आरोपी ने पीड़िता को धोखे से अपने साथ ले जाकर उसके साथ यौन संबंध बनाए, और यह POCSO अधिनियम और IPC की धारा 376 के तहत दंडनीय अपराध है।

बचाव पक्ष के तर्क

  1. स्कूल रिकॉर्ड अविश्वसनीय
    बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत स्कूल रिकॉर्ड पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि पीड़िता के पिता ने हलफनामे में दिए गए विवरणों से इनकार कर दिया था।
  2. बर्थ सर्टिफिकेट और नगर निगम रिकॉर्ड नहीं प्रस्तुत किया गया
    कानून के अनुसार, अगर उम्र का प्रमाण देना हो तो सबसे विश्वसनीय दस्तावेज़ जन्म प्रमाण पत्र या नगर निगम का रिकॉर्ड होता है। अभियोजन पक्ष कोई भी आधिकारिक दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में विफल रहा।
  3. पीड़िता और आरोपी के संबंध आपसी सहमति से थे
    बचाव पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि पीड़िता और आरोपी के बीच आपसी सहमति थी और उनके संबंध ज़बरदस्ती के नहीं थे।

न्यायालय द्वारा उठाए गए प्रमुख मुद्दे

  1. क्या अभियोजन पक्ष पीड़िता की उम्र को 18 वर्ष से कम साबित कर पाया?
  2. क्या स्कूल रिकॉर्ड को उम्र प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है?
  3. अगर पीड़िता बालिग थी, तो क्या यह मामला POCSO अधिनियम के तहत आएगा?
  4. क्या आरोपी के खिलाफ धारा 376 के तहत बलात्कार का मामला बनता है?

न्यायालय का निर्णय और विश्लेषण

1. उम्र प्रमाणित करने में अभियोजन पक्ष की विफलता

न्यायालय ने माना कि अभियोजन पक्ष पीड़िता की उम्र को प्रमाणित करने में विफल रहा। ट्रायल कोर्ट ने पाया कि स्कूल रिकॉर्ड में कई विसंगतियाँ थीं और पीड़िता के पिता द्वारा हलफनामे से इनकार करने से इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा हो गया।

न्यायालय ने कहा:
“अगर अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असमर्थ है कि पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम थी, तो POCSO अधिनियम के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।”

2. स्कूल रिकॉर्ड पर्याप्त प्रमाण नहीं

न्यायालय ने कहा कि जन्म प्रमाण पत्र और नगर निगम का रिकॉर्ड सबसे सटीक प्रमाण होते हैं, जबकि स्कूल रिकॉर्ड तब तक स्वीकार्य नहीं हो सकता जब तक इसे किसी अन्य मजबूत प्रमाण से समर्थित न किया जाए।

3. POCSO अधिनियम लागू नहीं होता

क्योंकि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि पीड़िता नाबालिग थी, इसलिए न्यायालय ने POCSO अधिनियम के तहत लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया।

4. बलात्कार के आरोपों पर संदेह

न्यायालय ने पाया कि बचाव पक्ष के इस तर्क में बल था कि आरोपी और पीड़िता के बीच आपसी सहमति थी।

5. आरोपी को राहत

अंततः, न्यायालय ने यह मानते हुए कि अभियोजन पक्ष अपने आरोपों को प्रमाणित करने में विफल रहा, आरोपी को दोषमुक्त कर दिया।


न्यायालय के फैसले का प्रभाव

इस निर्णय का महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है, विशेष रूप से उन मामलों में जहाँ आयु निर्धारण एक विवादास्पद मुद्दा होता है।

  1. आरोपी के अधिकारों की सुरक्षा – न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि केवल अभियोजन पक्ष के दावे पर भरोसा नहीं किया जा सकता; ठोस प्रमाण आवश्यक हैं।
  2. अभियोजन पक्ष के लिए सबक – अभियोजन पक्ष को भविष्य में यह सुनिश्चित करना होगा कि वे उम्र प्रमाणित करने के लिए मजबूत साक्ष्य प्रस्तुत करें।
  3. POCSO अधिनियम का दायरा स्पष्ट हुआ – यह निर्णय बताता है कि POCSO अधिनियम केवल उन्हीं मामलों में लागू होता है जहाँ यह स्पष्ट रूप से साबित किया जाए कि पीड़िता नाबालिग थी।

निष्कर्ष

दिल्ली उच्च न्यायालय का यह फैसला एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि कैसे अभियोजन पक्ष की छोटी-छोटी गलतियाँ आरोपी को राहत दे सकती हैं। उम्र प्रमाणित करने के लिए केवल स्कूल रिकॉर्ड पर निर्भर रहने की बजाय ठोस दस्तावेज़ी साक्ष्य की आवश्यकता होती है।

इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि किसी व्यक्ति पर गलत आरोप लगाने से पहले सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए। साथ ही, यह निर्णय अभियोजन पक्ष के लिए एक चेतावनी भी है कि वह अपने मामलों को मजबूती से पेश करने के लिए सही दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत करे।

Adv Vikas Shukla

Vikas Shukla is a lawyer and writer of blog. He writes on various law topics like crime, civil, recovery and family matters. He is a graduate in law who deals and practices with criminal matters, civil matters, recovery matters, and family disputes. He has been practicing for more than 5 above years and has cases from all over India. He is honest and hardworking in his field. He helps people by solving their legal problems. His blog provide valuable insights about law topics which are helpful for people.

Sharing Is Caring:

1 thought on “Judgment of Grounds for acquittal in POCSO cases”

  1. Writer has very well defined the issue for common understanding of a layman who not well versed in legal education. Great effort by the Adv Vikas Shukla

Comments are closed.

Call Now