Divorce Process in Hindi :तलाक एक कानूनी प्रक्रिया है, (divorce paper )जिसके तहत विवाह को समाप्त किया जाता है। तलाक के कई प्रकार होते हैं, और उनमें से सबसे सरल और प्रभावी तरीका है आपसी सहमति से तलाक। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि आपसी सहमति से तलाक क्या है (Mutual Divorce in Hindi), इसका प्रारूप, आवेदन प्रक्रिया, आवश्यक दस्तावेज़, और तलाक के नए नियम क्या हैं।
Table Contents
- 1 वैवाहिक तलाक क्या होता है – What is marriage Divorce in Hindi(Divorce Process in Hindi)
- 2 हिंदू धर्म के लोगों का तलाक कानून
- 3 मुस्लिम धर्म के लोगों का तलाक कानून
- 4 पारसी धर्म के लोगों का तलाक कानून
- 4.1 भारत में डाइवोर्स कितने प्रकार के होते है – Type of Divorce in India
- 4.2 1. आपसी सहमति से तलाक (Mutual Consent Divorce)
- 4.3 2. एकतरफा तलाक (Contested Divorce)
- 4.4 ईसाई कानून के तहत तलाक (Divorce under Christian Law)
- 4.5 मुस्लिम कानून के तहत तलाक (Divorce under Muslim Law)
- 4.6 पारसी कानून के तहत तलाक (Divorce under Parsi Law)
- 4.7 हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक (Divorce under Hindu Marriage Act) (Divorce Process in Hindi)
- 4.8 आपसी तलाक की प्रक्रिया में दो चरण होते हैं:
वैवाहिक तलाक क्या होता है – What is marriage Divorce in Hindi(Divorce Process in Hindi)
पति-पत्नी का जब विवाह होता हैतो वह खुशी से रहते हैं जब आपसी मत भेद एक दूसरे के प्रति आ जाता है तो विवाह का पवित्र संबंध तोड़ने की बात आ ती है जब हम वैवाहिक संबंध को समाप्त करना चाहते हैं को हम तलाक कह ते हैं तलाक एक कानूनी प्रक्रिया है के अंतर्गत हमें तलाक न्यायालय द्वारा प्रदान किया जाता है बिना तलाक दिए हुए यदि हम दूसरा विवाह करते हैं तो हमारे ऊपर बीएस की धारा 82 के किया है जिसकी सजा सात वर्ष है और शादी भी अमान्य होती है, तलाक होने के बाद पति-पत्नी का जो वैवाहिकजिम्मेदारियां होती हैं एक दूसरे के प्रति समाप्त हो जाती है तलाक हम अपने पर्सनल कानून के अंतर्गत ले सकते हैं अलग-अलग धर्म केअलग-अलग अधिनियम में यह इस प्रकार से किस प्रकार से है.
हिंदू धर्म के लोगों का तलाक कानून
दि आप हिंदू धर्म के लोग तो आप जो हिंदू मैरिज एक्ट 1955 (Hindu Marriage Act Of 1955) की अंतर्गत आते हैं धारा 13 हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के अंतर्गत आप तलाक का न्यायालय में अर्जी लगा सकते हैं .
मुस्लिम धर्म के लोगों का तलाक कानून
मुस्लिम समुदाय के लोगों पर मुस्लिम पर्सनल लॉ 1939 के कानून अनुसार तलाक ले सकता है
पारसी धर्म के लोगों का तलाक कानून
पारसी समुदाय से है तो आपके ऊपर यह कानून पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 अंतर्गत डाइवोर्स की अर्जी डाल सकते हैं
भारत में पति व पत्नी के डिवोर्स लेने के क्या कारण हो सकते है?
भारत में डाइवोर्स कितने प्रकार के होते है – Type of Divorce in India
भारत में डाइवोर्स या तलाक दो प्रकार के होते हैं, जो मुख्य रूप से व्यक्तिगत कानूनों पर आधारित होते हैं। यहां विभिन्न प्रकार के तलाक के बारे में जानकारी दी गई है:
1. आपसी सहमति से तलाक (Mutual Consent Divorce)
यह तलाक तब होता है जब दोनों पति-पत्नी आपसी सहमति से शादी खत्म करने के लिए तैयार होते हैं। इसमें दोनों पक्षों को अदालत में सहमति पत्र दाखिल करना होता है और अदालत के निर्णय के बाद तलाक की प्रक्रिया पूरी होती है।
2. एकतरफा तलाक (Contested Divorce)
एकतरफा तलाक तब होता है जब पति-पत्नी में से एक तलाक चाहता है लेकिन दूसरा सहमत नहीं होता। इसमें तलाक चाहने वाले को कुछ कानूनी आधारों पर तलाक के लिए याचिका दाखिल करनी होती है। इसमें घरेलू हिंसा, परित्याग, व्यभिचार, मानसिक या शारीरिक क्रूरता आदि आधार हो सकते हैं।
ईसाई कानून के तहत तलाक (Divorce under Christian Law)
- जो लोग ईसाई धर्म से हैउनके लिए धारा 10 कि सारे लोगहैंभारतीय तलाक अधिनियम (Indian Divorce Act, 1869 के तहत न्यायालय में डाइवोर्स की याचिका को दाखिल कर सकता है
- यदि पति या पत्नी में से कोई भी व्यभिचार (एडल्टरी) करता है;
- या यदि कोई भी पक्ष ईसाई धर्म का पालन नहीं करता है;
- या अगर कोई भी पक्ष दो साल की अवधि के लिए मानसिक रूप से अस्वस्थ रहता है;
- या यदि पति या पत्नी में से कोई भी दो साल की अवधि के लिए कुष्ठ रोग (लेप्रोसी) या यौन संचारित रोग जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित रहता है;
- या यदि पति या पत्नी में से कोई भी स्वेच्छा से वैवाहिक संबंधों को पूरा करने से इंकार करता है;
- या यदि कोई भी पक्ष दूसरे को दो साल या उससे अधिक की अवधि के लिए छोड़ देता है;
मुस्लिम कानून के तहत तलाक (Divorce under Muslim Law)
- मुस्लिमों के लिए तलाक शरियत (इस्लामी कानून) के तहत होता है। इसमें तीन प्रकार के तलाक होते हैं:
- तलाक-ए-अहसन – एक बार तलाक कहकर इंतजार किया जाता है कि अगर पुनः मिलाप हो जाए।
- तलाक-ए-हसन – तीन अलग-अलग समय पर “तलाक” शब्द कहा जाता है।
- तलाक-ए-बिद्दत – तुरंत तीन बार तलाक कहकर शादी खत्म कर दी जाती है (हालांकि यह भारत में अब प्रतिबंधित है)।
पारसी कानून के तहत तलाक (Divorce under Parsi Law)
- पारसी विवाह और तलाक अधिनियम 1936 के तहत पारसी समुदाय तलाक के लिए आवेदन कर सकता है।
- अधिनियम की धारा 32(a) के अनुसार, यदि विवाह संपन्न होने के एक वर्ष के भीतर पति या पत्नी द्वारा जानबूझकर विवाह को शारीरिक रूप से पूर्ण (consummate) नहीं किया जाता है, तो यह तलाक के लिए एक वैध आधार हो सकता है।
- (b) प्रतिवादी का विवाह के समय मानसिक रूप से विक्षिप्त होन-: अगर प्रतिवादी विवाह के समय से ही मानसिक रूप से अस्वस्थ है और यह स्थिति याचिका दाखिल होने तक बनी रही हो, तो तलाक का आधार बन सकता है। तलाक तभी दिया जाएगा जब (1) वादी को विवाह के समय प्रतिवादी की इस स्थिति की जानकारी न हो और (2) विवाह के तीन साल के भीतर याचिका दायर की गई हो।
- (bb) प्रतिवादी का दो साल या उससे अधिक समय तक असाध्य मानसिक विकार से पीड़ित होना**: अगर प्रतिवादी मानसिक विकार से पीड़ित है, जिससे वादी उसके साथ रहना असंभव समझे, तो तलाक का आधार हो सकता है। इसमें मानसिक विकार, सिजोफ्रेनिया, या असामान्य रूप से आक्रामक और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार शामिल है।
- (c) प्रतिवादी का विवाह के समय किसी अन्य व्यक्ति से गर्भवती होना:- अगर प्रतिवादी विवाह के समय किसी अन्य व्यक्ति से गर्भवती थी और वादी को इसकी जानकारी नहीं थी, तो यह तलाक का आधार हो सकता है।
- (d) प्रतिवादी द्वारा विवाह के बाद व्यभिचार, व्यभिचारिता, बहुविवाह, बलात्कार या अप्राकृतिक अपराध करना:अगर विवाह के बाद प्रतिवादी ने व्यभिचार (adultery), व्यभिचारिता (fornication), बहुविवाह (bigamy), बलात्कार (rape) या कोई अप्राकृतिक अपराध (unnatural offence) किया है, तो यह तलाक के लिए एक वैध आधार हो सकता है। इस प्रकार के गंभीर नैतिक उल्लंघन से पीड़ित पक्ष तलाक के लिए अदालत में याचिका दाखिल कर सकता है।
हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक (Divorce under Hindu Marriage Act) (Divorce Process in Hindi)
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत तलाक के लिए क्रूरता, व्यभिचार, परित्याग, मानसिक विकार, नपुंसकता आदि आधार हो सकते हैं। इसमें भी आपसी सहमति से तलाक और एकतरफा तलाक की प्रक्रिया शामिल है।
आपसी सहमति से तलाक (Mutula Divorce )(हिन्दू मैरेज एक्ट)
आपसी सहमति से तलाक (म्यूचुअल डिवोर्स) तब होता है जब पति-पत्नी अपने विवाह को समाप्त करने के लिए सहमति से निर्णय लेते हैं। इसमें वे अपनी संपत्ति के बंटवारे, गुजारा भत्ता, बच्चों की कस्टडी आदि जैसे सभी विषयों पर समझौता करके एक समझौता पत्र तैयार करते हैं। इसके बाद, वे मिलकर कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल करते हैं। यह तरीका कम समय और कम पैसे में पूरा हो जाता है और इस प्रक्रिया में शीघ्र तलाक मिल सकता है।
आपसी तलाक की प्रक्रिया में दो चरण होते हैं:
फर्स्ट मोशन: यह तब होता है जब तलाक की पहली बार अर्जी दी जाती है। शादी होने के बाद कम से कम 1 साल का इंतजार करना आवश्यक होता है ताकि इस पर अर्जी दाखिल की जा सके।
सेकंड मोशन: फर्स्ट मोशन के बाद, सेकंड मोशन के लिए 6 महीने का इंतजार करना होता है। हालांकि, कुछ मामलों में कोर्ट इस 6 महीने के कूलिंग पीरियड को समाप्त भी कर सकता है और एक महीने के बाद भी सेकंड मोशन की अर्जी दी जा सकती है।
तलाक के लिए आवश्यक दस्तावेज – Documents for Divorce
विवाह के साक्ष्य:
- विवाह के समय की फोटो
- मैरिज सर्टिफिकेट (विवाह प्रमाणपत्र)
पहचान और पते के प्रमाण:
- आधार कार्ड
- वोटर आईडी कार्ड
- पासपोर्ट (यदि हो)
अन्य दस्तावेज:
- पासपोर्ट साइज की फोटो (दोनों पक्षों की)
तलाक के बाद ही दूसरी शादी मान्य
तलाक के बाद ही दूसरी शादी मान्य होती है। तलाक हो जाने के बाद दोनों पक्ष अपने जीवन को स्वतंत्र रूप से जीने के लिए स्वतंत्र होते हैं और वे विवाह करने के लिए भी स्वतंत्र होते हैं। यदि तलाक के बाद कोई पक्ष दूसरी शादी करता है, तो वह कानूनी रूप से मान्य होती है।
पहलू | विवरण |
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तलाक का अर्थ | विवाह के कानूनी संबंध को समाप्त करना। |
तलाक के प्रकार | 1. आपसी सहमति (Mutual Consent) 2. विवादित (Contested) |
तलाक के आधार | – व्यभिचार (Adultery) – क्रूरता (Cruelty) – मानसिक विकार (Mental Disorder) – Desertion (छोड़ देना) – अन्य (जैसे, गर्भावस्था किसी अन्य व्यक्ति द्वारा) |
गुजारा भत्ता | तलाक के बाद एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को दी जाने वाली वित्तीय सहायता। |
तलाक की प्रक्रिया | 1. याचिका दाखिल करना 2. सुनवाई 3. निर्णय |
सम्पत्ति का बंटवारा | तलाक के बाद संपत्ति और धन का विभाजन। |
कानूनी सहायता | तलाक के मामलों में वकील की सहायता लेना। |
मामले की सुनवाई | अदालत में मामले की सुनवाई और निर्णय की प्रक्रिया। |
पुनर्विवाह के अधिकार | तलाक के बाद पुनर्विवाह की प्रक्रिया और नियम। |
तलाक के मामलों में गुजारा भत्ता क्या होता है?
गुजारा भत्ता एक तरह का आर्थिक सहायता होती है जब कोई महिला है अपना भरण पोषण करने में असमर्थ होती है ,तलाक के मामले में पत्नी अपने पति से की धारा 144 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (125 crpc act ) के गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है जब तक कोई महिला दूसरे विवाह नहीं कर लेती तब तक उसे गुजारा भत्ता है अपने पति द्वारा प्राप्त कर सकती हैअपने बच्चों केलिएअपने पति से गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है