498ए आईपीसी मामलों में बड़ा बदलाव – अब दहेज की मांग जरूरी नहीं, सिर्फ क्रूरता काफी!

परिचय

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए महिलाओं को दहेज प्रताड़ना और मानसिक या शारीरिक क्रूरता से बचाने के लिए बनाई गई थी। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इस धारा के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए दहेज की मांग आवश्यक नहीं है; यदि महिला के साथ क्रूरता की गई है, तो यह पर्याप्त आधार हो सकता है। इस लेख में हम इस महत्वपूर्ण फैसले के तथ्यों, दोनों पक्षों के तर्क, विवादित मुद्दे और अंतिम निर्णय को विस्तार से समझेंगे।

मामले के तथ्य

इस मामले में शिकायतकर्ता (पीड़िता) ने अपने पति और सास पर मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाया। पीड़िता के अनुसार:

उसका विवाह 2017 में हुआ था।

विवाह के कुछ समय बाद ही पति और ससुराल वालों ने उसे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।

वह मानसिक और शारीरिक रूप से इतना प्रताड़ित हुई कि उसे मायके लौटना पड़ा।

पीड़िता ने आरोप लगाया कि प्रताड़ना दहेज की मांग को लेकर नहीं थी, बल्कि घरेलू विवादों के कारण थी।

इस संबंध में, आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में अचम्पेट पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और 34 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

दोनों पक्षों के तर्क

आरोपियों का पक्ष:

पति और सास ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की।

उन्होंने तर्क दिया कि पीड़िता की शिकायत में दहेज की कोई स्पष्ट मांग नहीं थी, इसलिए यह मामला 498ए के दायरे में नहीं आता।

उनके अनुसार, यह एक पारिवारिक विवाद था, जिसे कानून के दुरुपयोग के रूप में दिखाया जा रहा है।

पीड़िता का पक्ष:

पीड़िता ने कहा कि शादी के बाद उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, जो कि धारा 498ए के तहत अपराध है।

उसका तर्क था कि यह धारा केवल दहेज प्रताड़ना तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें किसी भी प्रकार की क्रूरता शामिल हो सकती है।

विवादित मुद्दा

क्या धारा 498ए के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए दहेज की मांग आवश्यक है, या केवल मानसिक एवं शारीरिक क्रूरता भी इस धारा के तहत दंडनीय हो सकती है?

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि धारा 498ए के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए दहेज की मांग आवश्यक नहीं है। यदि किसी विवाहित महिला के साथ शारीरिक या मानसिक क्रूरता की जाती है, तो यह धारा लागू होगी।

अदालत ने कहा कि इस धारा का उद्देश्य महिलाओं को उनके वैवाहिक जीवन में होने वाली किसी भी प्रकार की प्रताड़ना से बचाना है।

सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए मामले को निचली अदालत में आगे की सुनवाई के लिए भेज दिया।

इस फैसले का प्रभाव

यह निर्णय उन मामलों में मार्गदर्शन करेगा जहां पीड़िता को केवल क्रूरता का सामना करना पड़ा है, न कि विशेष रूप से दहेज प्रताड़ना।

इससे यह स्पष्ट हुआ कि धारा 498ए का उद्देश्य केवल दहेज की मांग तक सीमित नहीं है, बल्कि महिलाओं को किसी भी प्रकार की प्रताड़ना से सुरक्षा प्रदान करना है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि इस धारा का दुरुपयोग न किया जाए और न्यायालय को हर मामले में तथ्यों के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।

न्यायिक दृष्टिकोण

कई मामलों में, न्यायालय ने यह स्वीकार किया है कि धारा 498ए का दुरुपयोग किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे ‘कानूनी आतंकवाद’ करार दिया है जब इसे झूठे आरोपों में इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए, न्यायालय ने निचली अदालतों को निर्देश दिया है कि वे केवल वास्तविक मामलों में ही इस धारा का प्रयोग करें।

498ए से संबंधित महत्वपूर्ण न्यायिक फैसले

राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2017)

इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को गिरफ्तारी करने से पहले विस्तृत जांच करनी चाहिए।

अरनेस कुमार बनाम राज्य (2014)

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि 498ए मामलों में गिरफ्तारी अंतिम उपाय के रूप में होनी चाहिए।

498ए से बचाव के उपाय

यदि किसी पुरुष पर झूठा 498ए का मामला दर्ज हो जाता है, तो उसे निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए:

अग्रिम जमानत के लिए आवेदन करें।

पर्याप्त साक्ष्य एकत्र करें जो यह साबित कर सके कि मामला झूठा है।

कानूनी सलाह लेकर निचली अदालत में याचिका दायर करें।

निष्कर्ष

यह फैसला महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है और यह पुष्टि करता है कि धारा 498ए केवल दहेज प्रताड़ना तक सीमित नहीं है। यदि कोई महिला विवाह के दौरान शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित होती है, तो वह इस धारा के तहत न्याय की मांग कर सकती है।

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Adv Vikas Shukla

Vikas Shukla is a lawyer and writer of blog. He writes on various law topics like crime, civil, recovery and family matters. He is a graduate in law who deals and practices with criminal matters, civil matters, recovery matters, and family disputes. He has been practicing for more than 5 above years and has cases from all over India. He is honest and hardworking in his field. He helps people by solving their legal problems. His blog provide valuable insights about law topics which are helpful for people.

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