115 (2) BNS क्या है? जानिए जानबूझकर चोट पहुँचाने पर सज़ा, जमानत और बचाव का पूरा कानून

87 / 100

115 (2) BNS : क्या आपने कभी ऐसी स्थिति का सामना किया है जब किसी  व्यक्ति ने जानबूझकर आपको धक्का दिया या साधरण  चोट पहुँचाई , और आप कुछ कर ही नहीं पाए? आमतौर पर ऐसी घटनाएं बाजार, स्टेशन या सार्वजनिक स्थानों पर होती हैं, लेकिन लोग अक्सर चुप रह जाते हैं।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

असली दिक्कत तब होती है जब हमें यह भी नहीं पता होता कि ऐसा करना कानूनन अपराध है और हम इसके खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। कानून की जानकारी न होने के कारण अधिकतर लोग रिपोर्ट तक नहीं करते, जिससे अपराधी बेखौफ हो जाते हैं।

अब आपको डरने या चुप रहने की जरूरत नहीं। 1 जुलाई 2024 से लागू भारतीय न्याय संहिता 115 (2) BNS ऐसे मामलों के लिए बनाई गई है। यह धारा बताती है कि जानबूझकर चोट पहुँचाने पर क्या सजा हो सकती है, जमानत मिलेगी या नहीं और आरोपी किन परिस्थितियों में अपना बचाव कर सकता है।

इस लेख में हम आपको बताएंगे कि115 (2) BNS in hindi और आप इसका लाभ कैसे उठा सकते हैं।

Table Contents

BNS Section 115 (1) – स्वेच्छा से चोट पहुँचाने की परिभाषा:

115 (2) BNS परिभाष :-जो कोई भी, किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने के इरादे से, या इस जानकारी के साथ कि उसके कार्य से किसी व्यक्ति को चोट पहुँचने की संभावना है, कोई कार्य करता है और उस कार्य से किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाता है, तो उसे ‘स्वेच्छा से चोट पहुँचाना’ कहा जाता है।

Hurt को समझने के के लिए धारा 115 बीएनएस को देखना होगा वह प्रकार है

जो कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को शारीरिक दर्द, बीमारी या कमजोरी (कमजोरी मतलब शारीरिक शक्ति में कमी) पहुंचाता है, उसे चोट पहुंचाना (hurt) कहा जाता है। अगर कोई जानबूझकर किसी को दर्द देता है, बीमार कर देता है या उसके शरीर को कमजोर कर देता है — तो वो “चोट पहुंचाना” कहलाता है।

उदाहरण जो कोई किसी महिला मे बाल पड़ लेती है तो उसे दर्द हुआ तो उसने महिला को चोट पहुंचाया

115 (2) BNSस्वेच्छा से चोट पहुँचाना” – उदाहरण सहित समझें

जब कोई व्यक्ति जानकर किसी को चोट पहुंचने के कोई कार्य करता है जिसे दूसरे व्यक्ति को चोट पहुँचता है तो वह धारा  115 (2) BNS के अपराध किया है

आइए इसे कुछ आसान secation 115 (2) BNS उदाहरणों से समझते हैं:

 उदाहरण 1: मामूली झगड़ा

परिदृश्य: राहुल के घर के सामने अमित ने अपनी कार पार्किग कर दिया कुछ समय बाद अमित आता  है उसको पार्किग जगह नहीं मिलती   तो राहुल और अमित के बीच कार पार्किंग को लेकर बहस हो जाती है। बात इतनी बढ़ जाती है कि राहुल गुस्से में अमित को धक्का दे देता है। अमित जमीन पर गिर जाता है और उसकी कोहनी पर हल्की खरोंच आ जाती है, जिससे उसे थोड़ा दर्द होता है।  खून बहने लगता है

लागू धारा: यहाँ राहुल ने अमित को जानबूझकर धक्का दिया और इस कार्य से अमित को शारीरिक चोट (खरोंच और दर्द)  लगी। भले ही चोट गंभीर न हो, राहुल ने स्वेच्छा से चोट पहुँचाई  है। यह 115 (2) BNS के तहत आएगा।

उदाहरण 2: घरेलू हिंसा का छोटा मामला

परिदृश्य: पति  ने अपनी पत्नी से बोलै मुझे  जाना है  मेरा पर्स  देदो  परन्तु पर्स में पैसे नहीं मिले पति ने गुसे  से पत्नी का चोटी  खींची  और एक थप्पड़ मार देता है, जिससे पत्नी के गाल पर लाल निशान पड़ जाता है और उसे दर्द होता है।

लागू धारा: पति ने जानबूझकर अपनी पत्नी को थप्पड़ मारा, जिससे उसे शारीरिक दर्द और निशान हुए। यह भी “स्वेच्छा से चोट पहुँचाना” माना जाएगा और धारा 115 (2) BNS के तहत मामला दर्ज हो सकता है।

 उदाहरण 3 भीड़ में धक्का-मुक्की

परिदृश्य: एक संगीत समारोह में, दो लोग (सौरभ और दीपक) एक-दूसरे से धक्का-मुक्की करने लगते हैं क्योंकि वे स्टेज के करीब जाना चाहते हैं। धक्का-मुक्की के दौरान, सौरभ दीपक को जानबूझकर इतनी ज़ोर से धक्का देता है कि दीपक भीड़ में लड़खड़ाता है और उसका पैर मुड़ जाता है, जिससे उसे चलने में थोड़ी दिक्कत होती है।

लागू धारा:सौरभ ने दीपक को जानबूझकर धक्का दिया, और इस कार्य से दीपक को शारीरिक चोट (मुड़ा हुआ पैर और चलने में दर्द) लगी। यह “स्वेच्छा से चोट पहुँचाने” की श्रेणी में आएगा।यह 115 (2) BNS के तहत आएगा।

उदाहरण 4: स्कूल या कॉलेज में झगड़ा

रिदृश्य: दो छात्र (अंजलि और प्रिया) अपनी नोटबुक पर झगड़ रहे हैं। झगड़े के दौरान, अंजलि प्रिया के बाल खींच लेती है, जिससे प्रिया को दर्द होता है और उसके कुछ बाल टूट जाते हैं।

लागू धारा  अंजलि ने जानबूझकर प्रिया के बाल खींचे, जिससे उसे दर्द हुआ। यह “स्वेच्छा से चोट पहुँचाने” का एक उदाहरण है।

115 (2) BNS– स्वेच्छा से चोट पहुँचाने के अपराध के लिए सजा

115 (2) BNS स्वेच्छा से चोट पहुँचाने के अपराध के लिए सजा

जब  court  में दोष  सिद्ध हो जाता है तो कोर्ट   धारा  115 (2) BNS के अनुसार   स्वेच्छा से चोट पहुँचाता है, उसे एक वर्ष तक के कारावास( imprisonment ) से, या दस हज़ार रुपये तक के जुर्माने (fine ) से, या दोनों से दंडित किया जाएगा

क्या BNS Section 115 (2) मे समझौता हो सकता है

जब कसे का trail चलता है आपस मे समझौता कर कर इस मामले को खतम कर सकते है case आगे नही चलता है । वही पर कसे खत्म हो जाता है

115(2) BNS लागू होने के मुख्य बिंदु

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की 115 (2) BNS ।(जो IPC की धारा 323 का स्थान लेती है और ‘स्वेच्छा से चोट पहुँचाने’ से संबंधित है) तब लागू होती है, जब कुछ विशेष शर्तें पूरी होती हैं। इसके मुख्य बिंदु नीचे दिए गए हैं:

115(2) BNS लागू होने के मुख्य बिंदु

1. इरादा या ज्ञान (Intention or Knowledge)

इस धारा 115 (2) BNS के तहत अपराध तब बनता है जब आरोपी व्यक्ति:

  • इरादे से चोट पहुँचाए: यानी, उसका सीधा मकसद ही किसी दूसरे व्यक्ति को शारीरिक कष्ट , दर्द पहुँचाना हो।
  • ज्ञान के साथ चोट पहुँचाए: यानी, उसे यह भली-भांति पता हो कि उसके किसी कार्य से दूसरे व्यक्ति को शारीरिक चोट पहुँचने की पूरी-पूरी संभावना है, भले ही उसका सीधा इरादा चोट पहुँचाने का न रहा हो।

उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति गुस्से में किसी पर पत्थर फेंकता है (इरादा चोट पहुँचाने का), या अगर वह जानता है कि उसकी लापरवाही से फेंका गया पत्थर किसी को लग सकता है (ज्ञान के साथ), और चोट लग जाती है, तो यह धारा 115 (2) BNS लागू हो सकती है।

2. चोट पहुँचाने वाला कार्य (Act Causing Injury)

आरोपी द्वारा ऐसा कोई भी कार्य किया जाना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप सामने वाले व्यक्ति को सीधी शारीरिक चोट (hurt) पहुँची हो। यह चोट शारीरिक दर्द, बीमारी या दुर्बलता के रूप में हो सकती है।

उदाहरण:

  • किसी को धक्का देना जिससे वह गिर जाए और उसे खरोंच लग जाए या मोच आ जाए।
  • किसी को थप्पड़ मारना जिससे उसे दर्द हो या लाल निशान पड़ जाए।
  • किसी पर हाथ उठाना जिससे उसे शारीरिक कष्ट हो।

यह महत्वपूर्ण है कि सिर्फ धमकी देना या गाली-गलौज करना इस धारा 115 (2) BNS के तहत नहीं आता, जब तक कि उससे कोई शारीरिक चोट न पहुँचे। इसमें शारीरिक संपर्क और उससे होने वाला नुकसान ही मायने रखता है।

धारा 115 BNS: एक जमानती और गैर-संज्ञेय अपराध

115(2) bns bailable or non bailable

यह अपराध 115 (2) BNS  गंभीर नही है साधारण होता है भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 115 (2) BNS के अंतर्गत आने वाला यह अपराध (जो IPC की धारा 323 के समान है, यानी स्वेच्छा से चोट पहुँचाना) एक गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) अपराध माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि पुलिस बिना वारंट के आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती और न ही सीधे तौर पर एफआईआर दर्ज कर सकती है। इसके लिए मजिस्ट्रेट के आदेश की आवश्यकता होती है  यह अपराध जमानती (Bailable) है पुलिस के द्वारा bail bound पर छोड़ देती है

115 (2) BNS के तहत अपराध कब माना जाएग

भारतीय न्याय संहिता यह 115 (2) BNS जो पूर्व में IPC की धारा 323 थी) ‘स्वेच्छा से चोट पहुँचाने’ को अपराध मानती है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि इस धारा के तहत कौन से कार्य अपराध की श्रेणी में आते हैं। यहाँ कुछ ऐसे सामान्य कार्य दिए गए हैं जो BNS की धारा 115 के तहत ‘चोट पहुँचाना’ माने जा सकते हैं और जिनके परिणामस्वरूप कानूनी कार्रवाई हो सकती है:

शारीरिक प्रहार (Physical Assault):

किसी को थप्पड़ मारना या मुक्का मारना, भले ही चोट मामूली हो।

किसी को लात मारना या ठोकर मारना, जिससे व्यक्ति गिर जाए और उसे शारीरिक दर्द या खरोंच आए।

किसी को जानबूझकर धक्का देना, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति का संतुलन बिगड़ जाए, वह गिर जाए और उसे कोई चोट (जैसे खरोंच, मोच) लग जाए।

  • वस्तु का प्रयोग (Use of an Object):

किसी व्यक्ति पर जानबूझकर कोई सामान या वस्तु फेंकना, जिससे उसे चोट लग जाए (जैसे, एक बोतल फेंकना जो किसी को लगे)।

शरीर के अंगों का दुरुपयोग (Misuse of Body Parts):
  • किसी व्यक्ति के हाथ या किसी अन्य अंग को जोर से पकड़ना, ऐंठना या मरोड़ना, जिससे उसे दर्द हो या उस अंग में अस्थायी दुर्बलता आ जाए।
  • किसी के बाल खींचना जिससे उसे दर्द हो।
परेशान करने वाले अन्य कार्य (Other Disturbing Acts causing Hurt):

जानबूझकर इतनी तेज़ आवाज़ करना या कोई ऐसी अचानक हरकत करना जिससे सामने वाले व्यक्ति को शारीरिक रूप से झटका लगे और उसे तुरंत कोई नुकसान पहुँचे (जैसे, अत्यधिक तेज़ ध्वनि से कान में दर्द होना या किसी ऐसे झटके से गिर जाना जिससे चोट लग जाए)। हालाँकि, यह बिंदु तभी लागू होता है जब ‘चोट’ की परिभाषा पूरी हो। केवल डराना या परेशान करना, बिना शारीरिक चोट के, इस धारा 115 (2) BNS) में नहीं आता

धारा 115(2) BNS में बचाव कैसे किया जा सकता है।

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 115(2) BNS के आरोप से बचाव के लिए विभिन्न आधार उपलब्ध हैं। प्रत्येक मामले के तथ्य और परिस्थितियाँ बचाव की रणनीति तय करती हैं।

  • इरादे या ज्ञान का अभाव:
    • आरोपी का चोट पहुँचाने का इरादा न होना।
    • आरोपी को यह ज्ञान न होना कि उसके कार्य से चोट लग सकती है।
    • कार्य का पूरी तरह अनजाने में या दुर्घटनावश होना (बिना लापरवाही)।
    • उदाहरण: भीड़ में अनजाने में किसी से टकरा जाना जिससे मामूली चोट लगे।
  • आत्मरक्षा का अधिकार:
    • अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की रक्षा में की गई कार्रवाई।
    • चोट पहुँचाई गई चोट का आत्मरक्षा के लिए आवश्यक अनुपात में होना।
    • उदाहरण: हमलावर को रोकने के लिए धक्का देना जिससे उसे हल्की चोट लगे।
  • गंभीर और अचानक उकसावा:
    • गंभीर और अचानक उकसावे के कारण चोट पहुँचाना।
    • इरादा केवल उकसाने वाले व्यक्ति को चोट पहुँचाने का होना। (यह सजा को कम करने का आधार है, पूर्ण बचाव नहीं।)
    • उदाहरण: लगातार अपमान या उकसावे के कारण आवेश में आकर हमला करना।
  • चोट का आरोपी द्वारा न होना:
    • यह साबित करना कि चोट आरोपी के कार्य से नहीं लगी थी।
    • चोट किसी अन्य कारण से लगी थी या पीड़ित को पहले से ही चोट थी।
  • सहमति (कुछ सीमित मामलों में):
    • यदि पीड़ित की सहमति से कोई ऐसा कार्य हुआ जिससे मामूली चोट लगी, जहाँ चोट पहुँचाने का इरादा नहीं था और पीड़ित ने स्वेच्छा से जोखिम उठाया था।
    • उदाहरण: खेलकूद की गतिविधियों में लगने वाली मामूली चोटें।
  • सबूतों की कमी या विरोधाभास:
    • अभियोजन पक्ष के पास आरोपी को दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त सबूतों का न होना
    • सबूतों या गवाहों के बयानों में विरोधाभास
    • पुलिस जांच में त्रुटियाँ।

आप को आच्छे वकील से सालह लेना चाहिए जो आप को इस case बचा सकता है


बचाव के लिए महत्वपूर्ण कदम:115(2) BNS

  • शांत रहें: आरोप लगने पर पुलिस से बहस करने से बचें।
  • चिकित्सा रिपोर्ट इकट्ठा करें: यदि चोट का दावा गलत है, तो संबंधित चिकित्सा प्रमाण एकत्र करें।
  • साक्ष्य जुटाएं: सीसीटीवी फुटेज, तस्वीरें, या अन्य सहायक सबूत इकट्ठा करें।
  • गवाहों की पहचान करें: यदि कोई गवाह है, तो उनके विवरण नोट करें।
  • तुरंत वकील से संपर्क करें: एक अनुभवी आपराधिक वकील से सलाह लेना सबसे महत्वपूर्ण है।

BNS की धारा115(2) BNS एक जमानती और समझौता योग्य अपराध है, जिससे कई बार मामलों को अदालत के बाहर भी निपटाया जा सकता है (पीड़ित की सहमति और अदालत की अनुमति से)। आपके वकील की सलाह इसमें महत्वपूर्ण होगी।


भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 323 बनाम भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 115 (2) BNS : एक तुलना

IPC धारा 323 बनाम BNS धारा 115 (2) BNS की तुलना | Voluntarily Causing Hurt

विशेषताभारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 323भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 115
अपराध का नामस्वेच्छा से चोट पहुँचाना (Voluntarily Causing Hurt)स्वेच्छा से चोट पहुँचाना (Voluntarily Causing Hurt)
परिभाषा“जो कोई भी स्वेच्छा से चोट पहुँचाता है…”“जो कोई भी स्वेच्छा से चोट पहुँचाता है…” (लगभग समान)
सजा1 वर्ष तक का कारावास, या ₹1,000 तक जुर्माना, या दोनों1 वर्ष तक का कारावास, या ₹10,000 तक जुर्माना, या दोनों
अपराध की प्रकृतिगैर-संज्ञेय (Non-Cognizable)गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable)
जमानतजमानती (Bailable)जमानती (Bailable)
समझौता योग्यहाँ, पीड़ित की सहमति से (Compoundable)हाँ, पीड़ित की सहमति से (Compoundable)
उद्देश्यशारीरिक हिंसा के छोटे मामलों को दंडित करनाशारीरिक हिंसा के छोटे मामलों को दंडित करना
मुख्य अंतरअधिकतम जुर्माना ₹1,000 तकअधिकतम जुर्माना ₹10,000 तक
वर्तमान स्थिति1 जुलाई 2024 से यह धारा प्रभावी नहीं रहेगी1 जुलाई 2024 से यह धारा प्रभाव में आएगी

इस लेख को पढे :

BNS Section 79 in Hindi

144 BNSS in Hindi के अंतर्गत Maintenance का दावा कैसे करें? (2025 गाइड)

महिला थाने में शिकायत के लिए आवेदन कैसे लिखें हिन्दी मे ?

अंतिम शब्द:

धारा 323 IPC (या अब BNS की धारा 115 (2) BNS) शारीरिक हिंसा के मामूली मामलों से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी उपकरण है। यह सुनिश्चित करती है कि किसी भी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर पहुँचाई गई चोट, भले ही वह गंभीर न हो, दंडनीय है। यह कानून हमें याद दिलाता है कि शारीरिक हिंसा का कोई भी रूप अस्वीकार्य है और समाज में शांति व व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हर व्यक्ति एक-दूसरे के प्रति सम्मान और संयम बरते।

कानून की यह धारा, अपनी जमानती और समझौता योग्य प्रकृति के बावजूद, व्यक्तिगत आचरण के महत्व को रेखांकित करती है और हमें एक अधिक सौहार्दपूर्ण समाज की ओर बढ़ने में मदद करती है।


धारा 323 IPC से जुड़े FAQs

धारा 115(2) BNS क्या होती है?

धारा 115(2) भारतीय दंड संहिता के तहत वह अपराध है जिसमें कोई व्यक्ति किसी दूसरे को जानबूझकर चोट या शारीरिक दर्द पहुंचाता है।

115(2) BNS में कितनी सजा हो सकती है?

इसमें अधिकतम 1 साल की जेल, ₹1000 तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

क्या 115(2) BNS में जमानत मिलती है?

हां, यह जमानती अपराध है। पुलिस स्टेशन से ही जमानत मिल सकती है

अगर झूठा केस 115(2) BNS किया गया हो तो क्या करें?

आप कोर्ट में झूठे केस को रद्द करने के लिए याचिका high court दायर कर सकते हैं।

धारा 115(2) BNS में क्या मामला कोर्ट में चलता है?

हां, यह मामला न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के कोर्ट में चलता है।

क्या 115(2) BNS में समझौता हो सकता है?

हां, यह समझौता योग्य (compoundable) अपराध है, जिसमें पीड़ित और आरोपी आपसी सहमति से समझौता कर सकते हैं।

115(2) BNS के तहत केस कितने समय में खत्म होता है?

यह इस पर निर्भर करता है कि गवाह कब पेश होते हैं और कोर्ट में कितनी सुनवाई होती है, लेकिन आम तौर पर यह एक साल से पाच साल के भीतर निपट सकता है।

Adv Vikas Shukla

Vikas Shukla is a lawyer and writer of blog. He writes on various law topics like crime, civil, recovery and family matters. He is a graduate in law who deals and practices with criminal matters, civil matters, recovery matters, and family disputes. He has been practicing for more than 5 above years and has cases from all over India. He is honest and hardworking in his field. He helps people by solving their legal problems. His blog provide valuable insights about law topics which are helpful for people.

Sharing Is Caring:

Leave a Comment